मस्जिद में दाखिल होते समय Masjid me dakhil hone ki dua पढ़ना बहोत जरुरी है। इस्लाम में नमाज और दुआ एक अहम मक़ाम रखते हैं, क्योंकि यह इन्सान को अल्लाह के साथ एक गहरे रिश्ते में बांधते हैं। मस्जिद, या “घर का स्थान”, वह जगह है जहां मुसलमान अपनी इबादत, ओर अल्लाह की याद के लिए इखट्टे होते हैं। मस्जिद में दाखिल होना एक ऐसा खूबसूरत पल है, जो हमारी रूह को शांति और ताजगी मिलती है।
क्यों जरुरी है : Masjid me dakhil hone ki dua
मस्जिद केवल एक इमारत नहीं है; यह वो जगह है जहां मुसलमान अपनी इबादत करते हैं और अल्लाह के करीब जाने की कोशिश करते हैं। इस्लाम में मस्जिद को बहुत सम्मान दिया गया है। यह माना जाता है कि मस्जिद अल्लाह का घर है और यहाँ पर उसकी विशेष मौजूदगी होती है। हदीस में है, “मस्जिद पृथ्वी पर सबसे बेहतर स्थान है” (सहीह मुस्लिम)। जब हम मस्जिद में दाखिल होते हैं, तो हमें सुकून मिलता है।
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Masjid me dakhil hone ki dua
मस्जिद में दाखिल होने से पहले, हम मुसलमानोंको एक अहम् दुआ पढ़नी चाइये। Masjid me dakhil hone ki dua इस प्रकार है:
“اللهم افتح لي أبواب رحمتك”
(اللَّهُمَّ افْتَحْ لِي أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ)
“अल्लाहुम्मा इफ्तह ली अबाब रहमतिक”
मतलब: “ये अल्लाह, मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाजे खोल दे।”
यह दुआ हमें यह याद दिलाती है कि मस्जिद में दाखिल होने से पहले हमें अपनी रूह को शुद्ध करना चाहिए और अल्लाह से उसकी रेहमत की मांग करनी चाहिए।
Masjid me dakhil hone ki dua : क्यों जरुरी है
- विनम्रता का प्रतीक
हम अल्लाह के दरबार में सिर झुका कर प्रवेश करते हैं, न कि अपने तक्काबुर या गर्व के साथ। यह दुआ हमें सिखाती है कि हम हमेशा अल्लाह पाक के सामने छोटे और अदृश्य हैं, और हमें उसकी रेहमत ओर साथ की जरुरत है। - रहमत का आह्वान
दुआ में “रहमत” का ज़िक्र किया गया है। मस्जिद एक ऐसा स्थान है जहां हमारी सारी चिंताएं और मानसिक थकावट दूर हो जाती हैं, और केवल अल्लाह की मौजूदगी का अहसास होता है। इस दुआ के जरिये से हम उसकी रेहमत की मांग करते हैं, जो हमें मस्जिद के वातावरण में शांति और सुकून प्राप्त करने में मदद करती है। - आध्यात्मिक सफाई
यह दुआ हमें यह याद दिलाती है कि मस्जिद में दाखिल होने से पहले हमें अपनी आत्मा की सफाई की आवश्यकता होती है। मस्जिद एक पवित्र स्थान है, और इस स्थान पर जाने से पहले हमें मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार होना चाहिए। यह दुआ हमारी शुद्धता की ओर एक कदम और बढ़ने की प्रेरणा देती है। - रवाब और समर्पण
मस्जिद में दाखिल होने से पहले इस दुआ का पढ़ना इस्लामिक समर्पण का प्रतीक है। जब हम अल्लाह से यह दुआ करते हैं, तो हम उससे सही रास्ते और रेहमत की मांग करते हैं, ताकि हम अपनी इबादत को सही तरीके से अदा कर सकें और हमारी दुआ कबूल हो।
मस्जिद में दाखिल होने से पहले क्या करना चाहिए?
मस्जिद में दाखिल होने से पहले कुछ और काम हैं जो हम मुसलमान को करने चाहिए: Masjid me dakhil hone ki dua
- ताहारत (वुजू) करना: मस्जिद में दाखिल होने से पहले वुजू करना जरूरी है। वुजू करने से न केवल शरीर की सफाई होती है, बल्कि यह हमें मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
- कदम से कदम बढ़ना: मस्जिद में जाते वक्त कदमों को ध्यान से और आदरपूर्वक बढ़ाना चाहिए। यह एक प्रकार की सम्मान की अभिव्यक्ति है।
- आदर और सम्मान: मस्जिद मेंदाखिल होते वक्त हमें अपने मन में इबादत और अल्लाह के ऊपर भरोसा करना है। हमारे दिल में दुआ और तस्बीह का जज़्बा होना चाहिए।
निष्कर्ष
यह हमें याद दिलाती है कि हम हमेशा अल्लाह की रहमत के साथ जुड़े रहें और अल्लाह से मदत की दुआ करते रहे। मस्जिद, जो कि अल्लाह का घर है, इसमें दाखिल होते समय हमें अपनी आत्मा को शुद्ध करने का और उसकी उपासना में पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने का समय मिलता है। इस दुआ के माध्यम से हम अपनी इबादत को और भी अच्छे और सच्चे मन से अदा करने की कोशिश करते हैं।
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