Muharram ka roza: फज़ीलत और महत्व
मुहर्रम islamic calendar का पहला महीना है, जिसे अल्लाह का महीना कहा जाता है। यह चार पवित्र महीनों (ज़िल-क़ादा, ज़िल-हिज्जा, मुहर्रम और रजब) में से एक है, जिनमें नेक कामों का सवाब कई गुना बढ़ जाता है।Muharram ka roza, खासकर आशूरा (10 मुहर्रम) के रोज़े की विशेष फज़ीलत हदीसों में बयान की गई है। यह लेख मुहर्रम के रोज़े की फज़ीलत, इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, नियत करने का तरीका और इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालेगा।
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Muharram ka roza की फज़ीलत
मुहर्रम का महीना अल्लाह के नज़दीक बहुत ही बरकत वाला महीना है। हज़रत अबू हुरैरह (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
हज़रत अबू क़तादा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“आशूरा के रोज़े के बारे में मुझे उम्मीद है कि अल्लाह तआला इसके बदले पिछले साल के गुनाह माफ़ फरमा देगा।”
(सही मुस्लिम, हदीस नंबर: 1162)
रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
“हम मूसा (अलैहिस्सलाम) के तुमसे ज़्यादा हक़दार और करीब हैं।”
(सही मुस्लिम, हदीस नंबर: 1130)
इसके बाद रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने आशूरा का रोज़ा रखा और अपनी उम्मत को भी इसका हुक्म दिया। हालांकि, यहूदियों से अलग दिखने के लिए रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया कि अगर वह अगले साल तक ज़िंदा रहे, तो 9 और 10 मुहर्रम दोनों दिन रोज़ा रखेंगे। लेकिन अगले साल से पहले ही आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का इंतकाल हो गया। इसलिए मुस्लिम उम्मत को सलाह दी जाती है कि वह 9 और 10 मुहर्रम या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखे, ताकि यहूदियों और नसारियों की समानता से बचा जा सके।

Muharram ka roza की नियत
मुहर्रम के रोज़े नफिली (गैर-फर्ज़) रोज़े हैं, और इनकी नियत रात में या सुबह फज्र के बाद ज़वाल से पहले किसी भी वक़्त की जा सकती है। हालांकि, रात में नियत करना मुस्तहब (पसंदीदा) है। नियत का तरीका निम्नलिखित है:
रात में नियत:
“नवैतु अन असूमा गदन लिल्लाहि तआला मिन शहरिल मुहर्रमी हाज़ा”
तर्जुमा: मैंने नियत की कि मैं कल इस मुहर्रम के महीने का रोज़ा अल्लाह तआला के लिए रखूंगा।
दिन में नियत (फज्र के बाद):
“नवैतु अन असूमा हाज़ल यौमा लिल्लाहि तआला मिन शहरिल मुहर्रमी हाज़ा”
तर्जुमा: मैंने नियत की कि मैं आज इस मुहर्रम के महीने का रोज़ा अल्लाह तआला के लिए रखूंगा।
नोट: नियत ज़ुबान से करना मुस्तहब है, लेकिन दिल में रोज़ा रखने का इरादा करना ही काफी है। अगर कोई व्यक्ति सुबह सेहरी के लिए उठता है और रोज़े का इरादा करता है, तो यह नियत के तौर पर पर्याप्त है।
आशूरा के दिन की विशेष घटनाएँ
10 मुहर्रम का दिन इस्लाम में कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा हुआ है। कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:
- हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) की निजात: इस दिन अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी इसराइल को फिरौन से आज़ादी दी।
- करबला की घटना: शिया मुस्लिमों के लिए 10 मुहर्रम का दिन हज़रत इमाम हुसैन (रज़ी अल्लाहु अन्हु), पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के नवासे, की शहादत का दिन है, जो 61 हिजरी (680 ईस्वी) में करबला के मैदान में शहीद हुए। इस दिन शिया समुदाय मातम और विशेष इबादतें करता है।
- अन्य ऐतिहासिक घटनाएँ: कुछ रिवायतों के अनुसार, इस दिन कई नबियों के साथ महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं, जैसे हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) की कश्ती का जूदी पहाड़ पर ठहरना और हज़रत यूनुस (अलैहिस्सलाम) का मछली के पेट से निकलना।
Muharram ka roza के कुछ अतिरिक्त फायदे
- गुनाहों की माफी: आशूरा का रोज़ा पिछले एक साल के छोटे गुनाहों का कफ़ारा बनता है।
- सुन्नत की पैरवी: यह रोज़ा रखना रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत है, जो नेकी और अल्लाह की रज़ा का ज़रिया है।
- आध्यात्मिक उन्नति: रोज़ा इंसान को तक़वा और सब्र सिखाता है, जो मुहर्रम के महीने में और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि यह महीना इबादत और अल्लाह की याद का महीना है।
- जन्नत की प्राप्ति: नेक अमल, खासकर रोज़ा, जन्नत में दाखिल होने का एक बड़ा ज़रिया है।
Muharram ka roza रखने के लिए सुझाव
- 9 और 10 या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखें: जैसा कि हदीस में उल्लेख है, केवल 10 मुहर्रम का रोज़ा रखने के बजाय 9 और 10 या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखना बेहतर है।
- नियत का ध्यान रखें: रोज़े की नियत साफ़ और अल्लाह की रज़ा के लिए होनी चाहिए।
- अन्य नेक काम करें: मुहर्रम के महीने में नफिल नमाज़, क़ुरआन की तिलावत, दुआ, और सदक़ा जैसी इबादतों को बढ़ावा दें।
- करबला की याद: खासकर शिया भाइयों के लिए, इस महीने में हज़रत इमाम हुसैन (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की शहादत को याद करना और उनके बलिदान से सबक़ लेना महत्वपूर्ण है।
मुहर्रम का महीना और खासकर आशूरा का रोज़ा इस्लाम में एक विशेष स्थान रखता है। यह रोज़ा न केवल पिछले गुनाहों की माफी का ज़रिया है, बल्कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत की पैरवी करने का भी एक मौक़ा है। इस महीने में इबादत, सब्र, और नेकी के कामों को अपनाकर हम अल्लाह की रज़ा और जन्नत की प्राप्ति की उम्मीद कर सकते हैं।
तो आइए, इस मुहर्रम में 9 और 10 या 10 और 11 मुहर्रम को रोज़ा रखें, और अल्लाह तआला से दुआ करें कि वह हमारी इबादतों को क़बूल फरमाए और हमें अपने रास्ते पर चलने की तौफ़ीक़ दे। आमीन।
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